श्री प्रेतराज जी की आरती

Pretraj

जय प्रेतराज कृपालु मेरी, अरज अब सुन लीजिये ।
मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ, नाथ दर्शन दीजिये ।
मैं करूं विनती आपसे अब, तुम दयामय चित धरो ।
चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो ।
सिर पर मोर मुकुट करमें धनुष, गलबीच मोतियन माल है ।
जो करे दर्शन प्रेम से सब, कटत तन के जाल हैं ।
जब पहन बख्तर ले खड़ग, बांई बगल में ढाल है ।
ऐसा भयंकर रूप जिनका, देख डरपत काल है ।
अति प्रबल सेना विकट योद्धा, संग में विकराल हैं ।
तब भुत प्रेत पिषाच बांधे, कैद करते हाल हैं ।
तब रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की ।
संग में लड़ाके ज्वान जिनकी, थाह नहीं है बलन की ।
तुम सब तरह समर्थ हो, प्रभुसकल सुख के धाम हो ।
दुष्टों के मारनहार हो, भक्तों के पूरण काम हो ।
मैं हूं मती का मन्द मेरी, बुद्धि को निर्मल करो ।
अज्ञान का अन्धेर उर में, ज्ञान का दीपक धरो ।
सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे ।
तन्दुल बूरा घृत मेवा, भेंट ले आगे धरे ।
सुयश सुन कर आपका, दुखिया तो आये दूर के ।
सब स्त्री अरू पुरूष आकर, पड़े हैं चरण हजूर के ।
लीला है अद्भुत आपकी, महिमा तो अपरंपार है ।
मैं ध्यान जिस दम धरत हूँ , रच देना मंगलाचार है ।
सेवक गणेशपुरी महन्त जी , की लाज तुम्हारे हाथ है ।
करना खता सब माफ , उनकी देना हरदम साथ है ।
दरबार में आओ अभी , सरकार में हाजिर खड़ा ।
इन्साफ मेरा अब करो , चरणों में आकर गिर पड़ा ।
अर्जी बमूजिब दे चुका , अब गौर इस पर कीजिये ।
तत्काल इस पर हुक्म लिख दो , फैसला कर दीजिए ।
महाराज की यह स्तुति , कोई नेम से गाया करे ।
सब सिद्ध कारज होय उनके , रोग पीड़ा सब टरे ।
‘‘सुखराम ’’ सेवक आपका, उसको नहीं बिसराइये ।
जै जै मनाऊं आपकी , बेड़े को पार लगाइये ।