sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

Ramayan

          दोहा सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम। रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम ॥55 ॥ चौपाई राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई ॥ सक सर … Read More

sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

Ramayan

          दोहा रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड। जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड ॥49क ॥ जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ। सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ॥49ख ॥ चौपाई अस प्रभु … Read More

sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

Ramayan

          दोहा सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि। ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ॥43 ॥ चौपाई कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥ सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म … Read More

सुन्दरकाण्ड (sundarkand)

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          दोहा काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥38 ॥ चौपाई तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक … Read More

Sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          दोहा निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति। बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ॥31 ॥ चौपाई सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना ॥ बचन कायँ मन … Read More

Sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          दोहा कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि । कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि  ॥18 ॥ चौपाई सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना  ॥ मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। … Read More

sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          दोहा कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास । जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंघु कर दास ।। 13 ।। चौपाई हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी । सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ।। बूड़त बिरह … Read More

sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          दोहा  निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन । परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ।। 8 ।। चौपाई तरू पल्लव  महुँ रहा लुकाई । करइ बिचार करौं का भाई ।। तेहि … Read More

Sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          दोहा पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार । अति लघु रुप धरौं निसि नगर करौं पइसार ।। 3 ।। चौपाई मसक समान रुप कपि धरी । लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।। नाम लंकिनी … Read More

Sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

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          सुन्दरकाण्ड श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफ़णीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरूं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करूणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ।। 1 ।। नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽ स्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा । भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंग्ङव निर्भरां … Read More