शीतला अष्टमी (Sheetla Ashtami)
शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसमें शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है । शीतला माता एक प्रमुख हिन्दू देवी के रूप में पूजी जाती है । धर्म पुरानों के अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग कि देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं । शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं । इनके एक हाथ में एक कलश होता है जिसमें शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है । sheetala mata शीतलाष्टमी का त्यौहार होली के पश्चात जो भी प्रथम उत्तम वार जैसे गुरुवार , शुक्रवार , सोमवार आदि आता है उसमें ये त्यौहार मनाया जाता है या फिर होली के बाद में अष्टमी को ये त्यौहार मनाया जाता है । देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती है एवं कई स्थानों पर शीतला माता का मेला भी लगता है । शीतला अष्टमी के दिन या उससे पहले उत्तम वार को शीतला माँ की पूजा अर्चना की जाती है । शीतला माता की पूजा करने के लिए पूजा के दिन से एक दिन पहले माता के भोग के लिए व् सभी घर वालों के लिए भोजन जैसे की पूरी, हलवा, मीठे चावल, कढ़ी, सब्जी, एवं अन्य पकवान आदि बनाये जाते हैं एवं दूसरे दिन उसी ठंडे व् बासी खाने से पूजा के पश्चात माता शीतला का भोग लगाया जाता है व् प्रसाद वितिरित किया जाता है । शीतला माता जी की पूजा बहुत ही विधि विधान के साथ कि जाती है, तथा शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है । इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है । कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक व् मन्त्रों को पढा़ जाता है । तथा उसके बाद में उसी बासी तथा ठंडे भोजन को सभी घर के सदस्य खाते हैं । उस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है । शीतला अष्टमी के त्यौहार को बसौडा़ भी कहा जाता हैं । इस प्रकार पूजन समाप्त होने पर भक्त माता से सुख शांती की कामना करते हैं । संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से भी विख्यात है । मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन खाना बंद कर दिया जाता है । मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में समस्त शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं, दाहज्वर, पीतज्वर, चेचक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्र विकार आदी रोग दूर होते हैं । शीतला अष्टमी के त्यौहार के बाद से ही ऋतु परिवर्तन होने के संकेत दिखाई देते हैं । तथा मौसम में कई प्रकार के बदलाव होते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है । शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है । क्योंकि मौसम परिवर्तन से ही कई प्रकार के रोग होते हैं जैसे की चेचक रोग जैसे अनेक संक्रमण रोगों का यही मुख्य समय होता है अतः इसीलिए शीतला माता की पूजा की जाती है ।