गृह एवं उनके स्थान अथवा भाव तथा उनके प्रभाव  :- 
सूर्य – प्रथम भाव, नवम भाव, दशम भाव, अथवा स्थान – सूर्य प्रथम भाव का स्वामी होता है एवं प्रथम भाव से शरीर ,रंग ,रूप,स्वभाव, ज्ञान,सुखदुःख,ताकत,बल,स्वास्थ्य,दादी, नाना, पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति, कर्म व्यापार, ट्रान्सफर, पूर्व जन्म, समुद्र यात्रा, गुरु-आचार्य, साला-साली, तीर्थ-यात्रा, भाई की पत्नी, जीजा, दोहता-दोहती, पौत्र- पौत्री ,भाग्य धर्म सास आदि के बारे में जानकारी मिलती है| स्थिर कारक : राजत्व, रक्तवस्त्र, माणिक्य, राज्य, वन, क्षेत्र, पर्वत, पिता, आदि |  सूर्य आत्मा एवं पित्त का अधिष्ठाता है | सूर्य पुरुष गृह है एवं क्रूर  गृह है तथा सूर्य आद्रा,पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा नक्षत्रों में बलवान होता है | सूर्य का अधिकार क्षेत्र हड्डी एवं सिर प्रदेश होता है तथा सूर्य का विशेष  प्रभाव २२ से २४ वर्ष की उम्र में ज्यादा होता है |
चन्द्रचतुर्थ भाव अथवा स्थान – चन्द्र चतुर्थ भाव का स्वामी होता है एवं चतुर्थ भाव से हम माता, सुख, मकान, जमीन,जायदाद, धन, खेतीबाड़ी, मोटरकार, आभूषण वस्त्र, पानी, नदी, पुल, स्वसुर, सुगंध, गाय, भैंस, आदि के बारे में जानकारी मिलती है | स्थिर कारक : माता, मन, पुष्टि, गंध, रस, ईख, गेंहूं, प्रथ्वी, क्षार, चांदी, ब्राहमण, कपास, आदि | चन्द्र मन एवं वात कफ का अधिष्ठाता है | चन्द्र स्त्री गृह है एवं चन्द्र अगर कमजोर होतो पाप गृह तथा अगर बली होतो शुभ गृह होता है, चन्द्र मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, उत्तरा-फाल्गुनी, नक्षत्रों में बलवान होता है |चन्द्र का हमारे शरीर में रक्त व् मुख के आसपास प्रभाव होता है तथा चन्द्र का २४ से २५ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभाव होता है | 
मंगल – तृतीय एवं छठवे भाव अथवा स्थान – मंगल तृतीय एवं छठवे भाव का स्वामी होता है, एवं तृतीय भाव से हम पराक्रम, भाई-बहन, छोटा भाई, नौकर, छोटी यात्रा, दाहिना कान, हिम्मत, वीरता, शक्ति,रोग, शत्रु, सौतेली माँ, झगड़े-टंटे, मुक़दमा,कर्ज, पानी से डर, जानवर से भय, मामा-मौसी, आदि का ज्ञान होता है| स्थिर कारक : मकान, भूमि, हिम्मत, वर्ण, अग्नि, रोग,चोरी, शील, भाई, राज्य, शत्रु, आदि | मंगल हिम्मत एवं कफ का अधिष्ठाता व कारक होता है | मंगल पुरुष एवं पाप गृह है, तथा मंगल हस्त,चित्र, स्वाती, विशाखा, नक्षत्रों में बलवान होता है | मंगल का हमारे शरीर में मज्जा व् मुख के आस पास अधिकार होता है तथा मंगल २८ से ३२ वर्ष की उम्र ज्यादा प्रभावी होता है |
बुध – चतुर्थ एवं दसम भाव अथवा स्थान – बुध चतुर्थ एवं दशम भाव का स्वामी होता है, तथा चतुर्थ भाव से हम माता, सुख, मकान, जमीन, जायदाद, धन, खेतीबाड़ी, मोटरकार, आभूषण वस्त्र, पानी, नदी, पुल, स्वसुर, सुगंध, गाय, भैंस,आदि के बारे में जानकारी मिलती है एवं दशम भाव से हमें पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति, कर्म व्यापार,ट्रान्सफर, पूर्व जन्म, सास आदि के बारे में जानकारी होती है | स्थिर कारक –ज्योतिष, गणित, डाक्टरी, बुद्दि, बीमा एजेंसी,शिल्प विधा, नर्त्य, हास्य, लक्ष्मी, व्यापार, गाना, लेखन, आदि | बुध वाणी एवं वात – पित्त – कफ का अधिष्ठाता व् कारक है | बुध नपुंसक  एवं शुभ गृह है , तथा बुध अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों में बलवान होता है | बुध का हमारे शरीर में त्वचा – नाभि के निकट स्थल पर प्रभाव होता है, तथा बुध ३२ वर्ष की आयु में ज्यादा प्रभावी होता है | 
गुरु – द्वितीय/दुसरे , पंचम, नवम,दशम, एकादस भाव अथवा स्थान – बुध द्वितीय, पंचम,नवम,एवं एकदास भाव का स्वामी होता है , एवं इससे हम विधा, बुद्दि, बेटी,बेटा, पुस्तक लेखन कार्य, आत्मा, मंत्र-तन्त्र, मंत्री, कर, भविष्य ज्ञान,श्रुति,स्मृति, शास्त्र ज्ञान, लोटरी, पेट, गर्भ, संतान, धन-धान्य, सोना-चांदी, संपत्ति, कुटुंब-कबीला, वाणी,विधा, चेहरा, खान पान, भोजन पत्रिका, दाहिना नेत्र, रत्न, समुद्र यात्रा, गुरु-आचार्य, साला-साली, तीर्थ-यात्रा, भाई की पत्नी, जीजा,दोहता-दोहती, पौत्र-पौत्री ,भाग्य धर्म , आवक, लाभ,प्रशंसा, बड़ा, भाई, पुत्र वधु, बाँयां कानबाँयां बाजु, व्यापार में लाभ-हानि, दामाद, पिता, राज्य, हुकूमत, पद प्राप्ति, पदोन्नति, कर्म व्यापार, ट्रान्सफर, पूर्व जन्म, सास आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है |
स्थिर कारक – धर्म, ब्राहमण, देवता, पुत्र, मित्र, कार्य, यज्ञ आदि कर्म, सोना, पालकी,इत्यादि | गुरु ज्ञान, सुख एवं कफ का अधिष्ठाता एवं कारक है |गुरु पुरुष एवं शुभ गृह है, तथा गुरु, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा-भाद्रपद नक्षत्रों में बलवान होता है | गुरु हमारे शरीर में चर्बी व् नासा/नाक के मध्य के क्षेत्र पर अधिकार होता है तथा यह १६वे, २२वे, ४०वे, वर्ष में ज्यादा प्रभावी होता है |
शुक्र – सप्तम भाव अथवा स्थान – शुक्र सप्तम भाव का स्वामी होता है, एवं इससे हम साझेदारी, यात्रा, पति-पत्नी, व्यापार,लौटरी, एवं दुसरे बच्चे के गर्भ धारण की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है | स्थिर कारक – यौवन, सुन्दरता, ऐश्वर्य, आभूषण, पत्नी, अन्य स्त्री, काम-शास्त्र, सुकुमारता, काव्य, नर्त्य -गान, सिनेमा, टीवी, इत्यादि | शुक्र काम एवं वात-कफ का अधिष्ठाता व् कारक होता है | शुक्र स्त्री एवं शुभ गृह है, तथा शुक्र, कृतिका, रोहिणी,मृगशिरा नक्षत्रों में बलवान होता है | शुक्र हमारे शरीर में वीर्य, नेत्रों तथा पैर पर अधिकार व् प्रभावी होता है तथा शुक्र २५ से २८ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभावी होता है |
शनि – छटवे, आठवें, द्वादश/बारहवें, एवं मतानुसार दशम भाव अथवा स्थान – शनिछटवे, अष्टम, द्वादश/बारहवें, एवं मतानुसार दशम भाव अथवा स्थान का स्वामी होता है, एवं इससे हम रोग, शत्रु, सौतेली माँ, झगड़े-टंटे, मुक़दमा,कर्ज, पानी से डर, जानवर से भय, मामा-मौसी, स्त्रियों का सौभाग्य, आयु, वसीयत, अनजाना धन प्राप्त होना, मृत्यु, क्लेश, अपवाद, विघ्न, जहर से मृत्यु, कैद, ऊँचाई से गिरना, दास, व्यव, खर्च, जासूसी पुलिस,दुःख, अवसाद, पाप, दरिद्रता, नुकसान, शत्रुता, कैद, शयन-शुख, वाम-नेत्र, पैर, गुप्त शत्रु, निंदक, आदि के बारे में ज्ञान होता है | स्थिर कारक – यात्रा, आयु, दास- दासी,वैराग्य, शस्त्र, केश-तेल, भैंस, घोडा, ऊँट, हाथी, शिल्प, नीलम, दुःख, दर्द, रोग, इत्यादि | शनि आयु एवं दुःख का अधिष्ठाता एवं कारक होता है |
शनि स्त्री नपुंसक एवं पाप गृह है | तथा शनि, पूर्वा-आषाढ़, उत्तरा-आषाढ़, अभिजित, श्रवण, नक्षत्रों में बलवान होता है | शनि हमारे शरीर में स्नायु व् पेट पर  प्रभावी होता है एवं यह ३६ से ४२ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभावी होता है  |
राहू – राहू एक छायाँ गृह है इसलिए इसका कुंडली में कोई स्थान निश्चित नहीं है ये किसी भी भाव/स्थान जिसमें यह बैठा होता है एवं जिस स्थान पर इसकी दृष्टी  पड़ती है उन स्थानों पर प्रभाव डालता है | स्थिर कारक – प्रयाण (यात्रा या मृत्यु) समय, सर्प, रात्री, सट्टा, खोई हुई वास्तु, छिपा हुआ धन का ज्ञान होता है | राहू पाप गृह है एवं उत्तर-भाद्रपद, रेवती, अश्वनी, भरणी नक्षत्रों में बलवान होता है | राहू का पेट पर प्रभाव व अधिकार क्षेत्र होता है एवं यह ४२ से ४८ वर्ष की उम्र में ज्यादा प्रभाव दिखाता है |
केतु – केतु एक छायाँ गृह  है इसलिए इसका कुंडली में कोई स्थान निश्चित नहीं होता है ये किसी भी भाव/स्थान जिसमें यह बैठा होता है एवं जिस स्थान पर इसकी दृष्टी पड़ती है उन स्थानों पर इसका प्रभाव होता है | स्थिर कारक –  वर्ण, चर्मरोग,अतिशूल, दुःख, मूर्ख, होने आदि का ज्ञान होता है | केतु पाप गृह है एवं उत्तर-भाद्रपद, रेवती, अश्वनी, भरणी नक्षत्रों में बलवान होता है | केतु का पेट पर प्रभाव व अधिकार क्षेत्र होता है एवं केतु ४८ से ५४ वर्ष की आयु  में ज्यादा प्रभावी होता है |
शुभ ग्रह  :क्योंकि फलित ज्योतिष का अस्तित्व ग्रहों का शुभ और अशुभ प्रभाव निर्धारित करता है , इसलिए इस पर ध्यान देना अत्यधिक आवश्यक है | जिन ग्रहों की मूल त्रिकोण राशियाँ लग्न से शुभ भावों में होती हैं , वह ग्रह जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं |
अशुभ ग्रह :जिन ग्रहों की मूल  त्रिकोण राशियाँ  लग्न से अशुभ भावों में होती हैं वह अशुभ फल प्रदान करते हैं | छठा ,आठवां, व् बारहवां  भाव जन्म कुंडली में अशुभ भावों के नाम से जाने जाते हैं |   
जन्म लग्न                           अशुभ ग्रह 
मेष                                                बुध , राहू, केतु,
वृषभ                                             मंगल, गुरु, शुक्र, राहू, व् केतु,
मिथुन                                           राहू व् केतु,
कर्क                                             गुरु, शनि, राहू व् केतु,
सिंह                                              चंद्रमा , राहू व् केतु,
कन्या                                          सूर्य, शनि, मंगल, राहू, व् केतु,
तुला                                             बुध, राहू, व् केतु,
वृश्चिक                                         मंगल, शुक्र, राहू व् केतु,
धनु                                               चन्द्रमा , राहू, व् केतु,
मकर                                            सूर्य , गुरु, रहू व् केतु,
कुम्भ                                            चन्द्रमा , बुध, राहू व् केतु,
मीन                                             सूर्य,  शुक्र,  शनि, राहू व् केतु