नक्षत्र :
आकाश में कई लघु तारा समूह आकृति में अश्व, स्वान, सर्प, मृग, हाथी, जैसे दिखाई देते हैं उन्हें नक्षत्र कहते हैं | ये नक्षत्र पृथ्वी मार्ग में चन्द्र द्वारा तय की गयी दूरी प्रकट करते हैं | एक नक्षत्र १३ अंश २०’ कला का होता है | प्रत्येक नक्षत्र चार चरण का होता है अतः नक्षत्र के एक चरण की दूरी १३ अंश २०’ कला /४ = ३ अंश २०’कला होती है | सवा दो नक्षत्र अर्थार्त ९ चरण की एक राशि होती है | चन्द्र २.२५ दिन में एक राशि पार कर लेता है यानी ३० अंश पार कर लेता है| सत्ताईस दिन में सभी १२ राशियाँ और २७ नक्षत्र पार कर लेता है | चन्द्र यात्रा मार्ग में कुल २७ नक्षत्र हैं मगर ज्योतिषाचार्यों का मत है कि उत्तरा-आषाढ़ नक्षत्र की अंतिम १५ घटी और श्रवण नक्षत्र की प्रथम ४ घटी कुल १९ घटी का अभिजीत नामक एक २८ वां नक्षत्र भी है | यह सभी शुभ कार्यों के लिए अच्छा रहता है
स्वभाव के आधार पर नक्षत्रों को सात श्रेणियों में बाँटा गया है :
१. स्थिर नक्षत्र : रोहिणी, उत्तर-फाल्गुनी,उत्तरा-आषाढ़, उत्तरा-भाद्रपद,(४,१२,२१,२६) ये चार नक्षत्र स्थिर होते हैं | भवन निर्माण, कृषि कार्य, ग्रह प्रवेश, नौकरी ज्वायन करना, उपनयन संस्कार आदि के लिए शुभ होते हैं |
२. चर(चंचल) नक्षत्र : पुनर्वशु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा,(७,१५,२२,२३,२४,) ये पांच नक्षत्र चर अथवा चंचल प्रकृति के होते हैं | मोटरकार चलाना या खरीदना, घुड़सवारी करना, यात्रा करना आदि गतिशील कार्यों के लिए शुभ रहते हैं |
३. क्रूर(उग्र) नक्षत्र : भरनी, मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वा-आषाढ़, पूर्वा-भाद्रपद, (२,१०,११,२०,२५) ये पांच नक्षत्र क्रूर अथवा उग्र प्रकृति के होते हैं | सर्जरी करना, भट्टे लगाना, अस्त्र-शस्त्र चलाना व्यापार करना, खोज कार्य करना, शोध कार्य करना, मारपीट करना, आग जलाना, आदि के लिए शुभ रहते हैं |
४. मिश्र (साधारण) नक्षत्र : कृतिका, विशाखा,(३,१६) ये दो नक्षत्र मिश्र अथवा साधारण प्रकृति के होते हैं | बिजली सम्बन्धी कार्य, दवाई बनाने का कार्य, लोहा भट्टी, गैस भट्टी, भाप इंजन आदि के कार्य करने शुभ रहते हैं |
५. लघु नक्षत्र : अश्विनी, पुष्य, हस्त,(१,८,१३,) ये तीन नक्षत्र लघु प्रकृति के होते हैं | नाटक, नौटंकी,रूपसज्जा, गायन, दूकान,शिक्षा,लेखन,प्रकाशन, आभूषण, आदि के कार्यों को करने के लिए शुभ रहते हैं |
६. मृदु (मित्रवत) नक्षत्र : मृगशिरा,चित्रा, अनुराधा, रेवती,(५,१४,१७,२७) ये चार नक्षत्र मृदु अथवा मित्रवत प्रकृति के होते हैं | कपडे बनाना, सिलाई कार्य,खेल, आभूषण बनवाना, सेवा कार्य,व्यापार,सत्संग आदि कार्य करना शुभ रहते हैं |
७. तीक्ष्ण (दारुण) नक्षत्र : आद्रा,आश्लेषा,ज्येष्ठा, मूल,(६,९,१८,१९) ये चार नक्षत्र तीक्ष्ण अथवा दुखदायी प्रकृति के होते हैं |लड़ाई-झगड़े करना, जानवरों को वश में करना, कोई हानिकारक कार्य करना, जादू-टोना करना आदि कार्य शुभ रहते हैं |
शुभाशुभ फल के आधार पर नक्षत्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है |
१. शुभ फलदायी नक्षत्र : १,४,८,१२,१३,१४,१७,२१,२२,२३,२४,२६,२७, कुल १३ नक्षत्र शुभ फलदायी होते हैं |
२. मध्यम फलदायी नक्षत्र : ५,७,१०,१६, कुल चार नक्षत्र मध्यम फलदायी होते हैं |
३. अशुभ फलदायी नक्षत्र : २,३,६,९,११,१५,१८,१९,२०,२५, कुल १० नक्षत्र अशुभ फलदायी होते हैं |
चोरी गयी वस्तु प्राप्ति अथवा अप्राप्ति के आधार पर नक्षत्रों को चार भागों में बाँटा गया है :
१. अंध लोचन नक्षत्र : ४,७,१२,१६,२०,२३,२७, ये सात अंध लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में खोई या चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में जाती या होती है एवं शीघ्र/ जल्दी मिल जाती है |
२. मंद लोचन नक्षत्र :१,५,९,१३,१७,२१,२४, ये सातनक्षत्र मंद लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | खोई हुई वस्तु या चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में जाती या होती है एवं प्रयत्न करने पर मिल जाती है |
३. मध्य लोचन नक्षत्र :२,६,१०,१४,१८,२५, ये छः नक्षत्र मध्य लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु दक्षिण दिशा में जाती या होती है तथा सूचना मिलने या मालूम होने पर भी नहीं मिलती है |
४. सुलोचन नक्षत्र :३,८,११,१५,१९,२२,२६, ये सात नक्षत्र सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु उत्तर दिशा में जाती या होती है | उत्तर दिशा में जाने वाली वस्तु की न तो कोई जानकारी या सूचना मिलती है और न ही वो वस्तु वापिस मिलती है |