🌷 घर में क्लेश बढ़ने का कारण 🌷

पति-पत्नी का रिश्ता मधुर नहीं होता तो घर में बहुत सारी समस्याएं आ जाती है। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन इन रिश्तों में मधुरता के पीछे ग्रह का ठीक होना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए आज जानते हैं कौन से ग्रह पैदा करते हैं पति-पत्नी के बीच दरार।
कुंडली में अग्नि तत्व की मात्रा ज्यादा होने पर। शुक्र या बृहस्पति के कमजोर होने पर। मजबूत मंगल दोष होने पर। अष्टम भाव में पाप ग्रह होने पर। बेडरूम का रंग ठीक नहीं होने पर। ईशान कोण में गड़बड़ी होने पर। मूलांक 1, 4, 5 या 8 होने पर।
उपाय-
1. घर में जंगली या हिंसक पशु-पक्षियों के चित्र ना लगाएं।
2. बेडरूम में हथियार, नुकीली चीजें या खाने की वस्तुएं ना रखें।
3. बेडरूम में देवी-देवताओं के चित्र ना लगाएं।
4. घर में झाडू और चाकू को छिपाकर रखें।
5. पति-पत्नी का चित्र दक्षिणी दीवार पर ना लगाएं।
6. पति को शुक्र के वैदिक मंत्र का जाप करना चाहिए और पत्नी को बृहस्पति के मंत्र का जाप करना चाहिए।
7. बेडरूम में गुलाबी, धानी या सफेद रंग का प्रयोग करें। बहते हुए जल का चित्र लगाना उत्तम होगा।
8. पति-पत्नी का चित्र पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाएं।
9. घर के बीच में तुलसी का पौधा लगाएं।
10. घर में शिव-पार्वती की संयुक्त पूजा करें।वैवाहिक जीवन के शत्रु ग्रह
शनि – अगर शनि का संबंध विवाह भाव या उसके ग्रह से हो तो विवाह भंग होता है। शनि विवाह भंग करने का कारण होता है तो इसके पीछे घर के लोग जिम्मेदार माने जाते हैं। शनि की वजह से पति-पत्नी के संबंधों में दूरियां बन जाती है। अगर शनि की वजह से समस्या आ रही हो तो शिव जी को रोज सुबह जल चढ़ाएं। साथ ही शनिवार को लोहे के बर्तन में भरकर सरसों के तेल का दान करें।
मंगल – वैवाहिक जीवन में हिंसा हो रही हो तो इसके पीछे मंगल होता है। अगर मामला हिंसा तक पहुंच गया है तो इसके पीछे मगंल होता है।
सूर्य – इसके दुष्प्रभाव हो तो जीवनसाथी का करियर बाधा देता है। कई बार अंहकार के कारण आपसी संबंध खराब हो जाते हैं। यहां पर बहुत सोच समझकर शांतिपूरण तरीके से विवाह भंग होता है। हालांकि शादी के काफी समय बाद विवाह विच्छेद होता है। रोज सुबह सूर्य को रोली मिला हुआ जल अर्पित करें। एक तांबे का छल्ला जरूर धारण करें। गुलाबी रंग के कपड़े धारण करना शुभ माना जाता है।

परम सुख की प्राप्ति कैसे ?

श्री योगवासिष्ठ महारामायण में वसिष्ठजी महाराज कहते हैं- हे राम जी ! जो बोध से रहित किंतु चल ऐश्वर्य से बड़ा है उसको तुच्छ अज्ञान नाश कर डालता है, जैसे बल से रहित सिंह को गीदड़, हिरण भी जीत लेते हैं। इससे जो कुछ प्राप्त होता दृष्टि आता है वह अपने प्रयत्न से होता है। अपना बोधरूपी चिंतामणि हृदय में स्थित है, उससे विवेक रूपी फल मिलता है। जैसे जानने वाला केवट समुद्र से पार करता है, अजान नहीं उतार सकता, तैसे ही सम्यक् बोध संसार-समुद्र से पार करता है और असम्यक् बोध जड़ता में डालता है।

सम्यक बोध को सही ज्ञान माना गया है। वह संसार से, दुःखों से पार कर देता है और असम्यक बोध को गलत ज्ञान माना गया है क्योंकि वह संसार चक्र में फँसा देता है। सही ज्ञान क्या है ? कि हम सुख चाहते हैं, सदा चाहते हैं और स्वतंत्रता चाहते हैं। कुछ भी काम करें, हम सुख को पाने और दुःख को मिटाने के लिए करते हैं और वह सुख सदा रहे यह भी मन में होता है। कोई कहेः ‘भगवान करे कि आप दो घंटे सुखी रहो, बाद में दुःखी हो जाओ’ तो –  अच्छा नहीं लगेगा। दो दिन सुखी रहो फिर दुःखी होना – अच्छा नहीं लगेगा। दो साल आप सुखी रहो फिर दुःखी होना –  अच्छा नहीं लगेगा। यहाँ जीते जी सुखी रहो फिर नरकों में जाना नहीं अच्छा लगता। तो आप सुख भी चाहते हैं और सदा के लिए भी चाहते हैं। अच्छा, सुखी तो रहो लेकिन बंधन में रहो….. नहीं, बंधन नहीं चाहिए। तो आप स्वतंत्रता भी चाहते हैं। रामायण भी कहता हैः

पराधीन सपनेहूँ सुखु नाहीं।

जो पराधीन होता है उसको तो स्वप्न में भी सुख नहीं है। टुकड़े-टुकड़े के लिए जो जीव-जंतु भटकता है, उसको आप फँसाकर (कैद करके) फिर बढ़िया से बढ़िया खाने को दो तो वह खायेगा नहीं, बाहर निकलने को छटपटायेगा। अपनी मर्जी से आप घंटों भर कमरा बंद करके बैठो, परवाह नहीं लेकिन बाहर से किसी ने कुंडा-ताला लगा दिया तो छटपटाहट होगी। तो आप बंधन भी नहीं चाहते और सदा व शाश्वत सुख चाहते हैं लेकिन गलती यह करते हैं कि जो स्वतंत्र सुख है, सदा सुख है, निर्बंध सुख है उधर का ज्ञान नहीं, उधर की प्रीति नहीं, उधर की रूचि नहीं और जो सदा रहने वाला नहीं है, परतंत्रता देने वाला है उधर चले जाते हैं।

जैसे दीये पर पतंगे आ जाते हैं, गाड़ियों की सामने की बत्ती (हेडलाइट) पर जंतु उड़ते-उड़ते आते हैं, तो आते सुख के लिए हैं, दुःख लेने को नहीं आते लेकिन गलत निर्णय है, गलत बुद्धि है तो दुःखी हो जाते हैं। जहाँ सुख नहीं है, केवल सुख का आभास है, वहाँ सुख समझ के जैसे पतंगे जिंदगी खो देते हैं ऐसे ही आम आदमी भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में छटपटा के जिंदगी पूरा कर देता है।

गीता (2.70) में कहा हैः स शान्तिमाप्नोति न कामकामी। शांति वह पाता है जो भोगों से विचलित नहीं होता। जिसको सम्यक् ज्ञान है, सत्य का सुख पाता है, सत्य सुख की माँग है और सत्य सुख में ले जाने वाला सत्संग मिल गया है, वही आत्मसुख में संतुष्ट हो जाता है, भोगों को चाहने वाला नहीं। श्रीकृष्ण कहते हैं- संतुष्टः सततं योगी… विषय विकारों के भोग-सुखों वाला न सदा सुखी रह सकता है, न सदा संतुष्ट रह सकता है। स शान्तिमाप्नोति…. यह मिल जाय तो सुखी हो जाऊँ, यह हट जाय तो सुखी हो जाऊँ, यहाँ चला जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ….. हिंदुस्तान से अमेरिका सेट हो जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ….. अमेरिका वाले कई आते हैं, बोले, ‘वहाँ कुछ नहीं, अब तो भारत में सेट होना है।’ बाबा, कहीं भी जाओ, जब तक सम्यक् ज्ञान में सजग नहीं हुए, शाश्वत सुखस्वरूप में सजग नहीं हुए, परिस्थितियाँ अपसेट करती रहेंगी और मृत्यु भी जन्म-मरण व चौरासी के चक्कर में अपसेट करती ही रहेगी। परिस्थितियों को अऩुकूल बनाकर सुखी रहना चाहते हो यह बड़े-में-बड़ी गलती है। अपने सुखस्वरूप आत्मस्वभाव को भूलकर परिस्थितियों की अनुकूलता में सुखी रहना चाहते हैं यह भूल है। जहाँ परिस्थितियों की पहुँच नहीं, परिस्थितियों की दाल नहीं गलती वह सुखस्वरूप अपना आत्मा ज्यों-का-त्यों है, उसका ज्ञान पाओ।

बुद्धि में अज्ञान है ‘धन कमा के सुखी हो जाऊँ, धन छोड़ के सुखी हो जाऊँ…. त्याग कर दिया एकदम लेकिन अकेले त्याग से भी पर सुख नहीं मिलता, अकेले संग्रह से भी परम सुख नहीं मिलता, अकेले होने से भी नहीं मिलता। परम सुख पाने के लिए परम सुख का पता चाहिए, परम सुख की प्रीति चाहिए और परम सुख के अनुभवसम्पन्न महापुरुष का सान्निध्य चाहिए, बस !

💐💐💐8💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐