प्राणायाम एवं योग में बंध का महत्त्व |

योग में एक रहस्य है जो ऊर्जा को रोक कर रखता है |ऊर्जा यानी प्राणमय कोष होता है , ऊर्जा का वास शरीर की पांच परतों में से तीसरी परत में होता है | ऊर्जा पूरे शरीर में बहती है | ऊर्जा को बंध के द्वारा बाँध कर रखा जा सकता है | आसन, प्राणायाम और मुद्रा के बाद बंध का स्थान आता है , बहुत कम ग्रंथों में बंध का उल्लेख किया गया है | बंध का कार्य शक्ति को अवरुद्ध करना है | प्राणों की जाग्रति से सम्बंधित साहित्यों में बंध के बारे में बताया गया है | शरीर में तीन द्वार  होते हैं – कंठ , नाभि, और गुदा द्वार , वहीँ से ऊर्जा का संचय बंध के माध्यम से करना होता है |
प्राणायाम के अभ्यास से प्राण जाग्रत होते हैं और बंधों के अभ्यास से यह एक स्थान पर जमा होते हैं | जब बंधों को लगाया जाता है तो प्राण का प्रवाह उलट जाता है और चित्त का भटकाव रुकता है | बंध प्राण को बिखरने नहीं देते हैं |

बंध तीन तरह के होते हैं | १. जालंधर बंध  २. उड्डियान  बंध  ३. मूल बंध  |

जब इं तीनों बंधों को एक साथ लगाया जाते है तब महाबन्ध कहलाता है | जब इं तीनों को लगाया जाता है तो मृत्युमान्तग केसरी  योग कहलाता है यानि ये तीनों बंध मृत्यु तक को मात दे सकते हैं |

  • जालंधर बंध :- जालंधर बंध में या तो पूरी श्वास पेट में रोककर या फिर पूरी श्वास शरीर से बाहर निकालकर ठुड्डी को छाती से लगाकर श्वास के प्रवाह को रोककर लिया जाता है | यह कंठ में लगता है , इसका प्रभाव कंठ से लेकर मस्तिष्क तक रहता है |

यदि भूख लग रही हो और जालंधर बंध लगाकर बैठा जाए तो भूख का असर दिमाग पर नहीं होगा | साथ ही रोगों के लिहाज से देखा जाये तो यह थायराइड को नियंत्रित करने में कारगर है | थायराइड के अभ्यासी को विपरीत करनी करने को कहा जाता है इस क्रिया में जालंधर बंध अपने आप लगता है | यह थायराइड ग्रंथि से होने वाले अनियमित स्त्राव को ठीक करता है | इससे शरीर में इतनी ऊष्मा उत्पन्न होती है की श्वास लेने की आवश्यकता से हमारा ध्यान हट जाता है |

  • उड्डियान बंध :- उड्डियान शब्द का अर्थ है उड़ना |  यह तभी लग सकता है जब पूरी श्वास बाहर हो | इसमें नाभि को मेरुदंड से चिपकाना होता है इसे खड़े रहकर भी कर सकते हैं और बैठकर भी कर सकते हैं | खड़े रहकर करने में शरीर को आगे झुकाना होगा और दोनों हाथ घुटनों पर रखने होंगे |

यह पेट से लेकर फेफड़ों तक के रोगों को ख़त्म करता है , साथ में पेट को कम भी करने में मदद करता है | तनाव को पूरी तरह से ख़त्म कर देगा | ध्यान रहे की पेट पूरी तरह से खाली हो अन्यथा अन्दर आँतों मेंमें जख्म हो सकते हैं | हाई ब्लड प्रेशर , दिल के रोगी , हर्निया वाले लोग इसे नहीं करें | श्वास जब भी छोड़ें मुंह से जोर लगाकर पूरी निकालें , केवल नासिका से नहीं | यहीं पर अपान और समान वायु का मिलन होता है यानि ख़राब वायु अच्छी वायु में तब्दील होती है |

  • मूलबंध :-  शौच रोकने के लिए जिन मांसपेशियों को हम खींचते हैं , उसे मूलबंध कहा जाता है |  यह श्वास भीतर रहने पर और बाहर रहने पर भी लगा सकते हैं , बशर्ते पेट साफ हो क्योंकि पेट साफ न होने पर यह विकार कर सकता है |

यह पाचन सम्बन्धी समस्याओं में लाभ करेगा | पुरुषोचित रोग और महिलाओं के ऋतुस्त्राव की अनियमितता को यह ठीक कर देता है | मस्तिष्क में ऊर्जा को छानकर भेजने का काम यही करता है | यहाँ तक की ध्यान के अभ्यास में मूमूल्बंध बहुत कारगर माना जाता है | मूलबंध शारीरिक और मानसिक क्रिया दोनों ही हैं , इससे  शरीर  हल्का लगने लगता है | यदि इसे लगाने का अभ्यास जारी रखा तो शरीर में स्फूर्ति आएगी | लेकिन  इन  सबके लिए आपको पेट साफ रखना बहुत जरूरी है | दर्द को दूर करने में भी मूलबंध सहायता करता है |