भंडारण कक्ष ( स्टोरेज रूम )

भंडारण कक्ष ( स्टोरेज रूम ) :  भंडारण कक्ष मकान में हमेशा उत्तर – पश्चिम भाग में ही  बनाना चाहिए | विशेष परिस्थितियों में दक्षिण – पश्चिम भाग में भी स्टोरेज कक्ष बना सकते हैं | कक्ष में रसोई गैस एवं … Read More

भोजन कक्ष(डाइनिंग रूम )

भोजन कक्ष : भोजन कक्ष हमेशा मकान में पश्चिमी भाग में ही बनाना चाहिए , तथा विशेष परिस्थितियों में पूर्व या उत्तरी भाग में भी भोजन कक्ष बनवा सकते हैं | भोजन कक्ष का दरवाजा मकान के बाहरी मुख्य दरवाजे के सामने … Read More

बैठक कक्ष / मेहमान कक्ष (ड्राइंगरूम )

बैठक कक्ष / मेहमान कक्ष (ड्राइंगरूम )  :  बैठक का कमरा हमेशा घर के उत्तर -पूर्व भाग में बनवाना चाहिए | उत्तर या पूर्व के भाग में भी बैठक अथवा मेहमान कक्ष बनवा सकते हैं | बैठक कक्ष या मेहमान कक्ष में … Read More

शयन कक्ष (बैड रूम )

शयन कक्ष (बैड रूम ) : शयन कक्ष भवन के दक्षिण – पश्चिम किनारे या क्षेत्र में होना चाहिये अगर सभी शयन कक्ष इस क्षेत्र में बनाना संभव नहीं हो तो  बाकी शयन कक्षों को पूर्व, उत्तर – पूर्व , दक्षिण – … Read More

पूजा कक्ष / प्रार्थना कक्ष / उपासना कक्ष / ध्यान कक्ष

पूजा कक्ष/प्रार्थना कक्ष/उपासना कक्ष/ध्यान कक्ष  :  पूजाकक्ष  हमेशा उत्तर – पूर्व (ईशान )  दिशा में  ही बनाना चाहिये यहाँ पर पूजा कक्ष सर्वोत्तम रहता है | देव मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा में और और पूजा करने वाले का मुख पूर्व … Read More

मकान बनाने के लिये प्लाट या निर्माणस्थल का चयन करना

मकान बनाने के लिये  प्लाट या निर्माणस्थल का चयन  करना :- किसी भी भवन के लिये उसका निर्माण स्थल  या प्लाट की मूल आवश्यकता होती है  और इसके चुनाव में सबसे अधिक सावधानी  रखनी चाहिये | निर्माणस्थल  या प्लाट का चयन करते … Read More

शिलान्यास करने व् मुख्य द्वार लगाने का शुभसमय व् स्तिथि

शिलान्यास करने व् मुख्य द्वार  लगाने का शुभ समय  :-  वैशाख शुक्ल पक्ष (अप्रैल – मई ), श्रावण मास (जुलाई – अगस्त ), मार्गशीर्ष मास (नवम्बर – दिसंबर) पौष मास (दिसंबर – जनवरी ) और फाल्गुन मास (फरवरी – मार्च) महीने शुभ  … Read More

दिशाएँ एवं क्षेत्र

दिशाएँ  एवं क्षेत्र :-  सूर्य जिस दिशामें उदय होता हैउसदिशा को पूर्व दिशा कहते हैं  एवं जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है उस दिशा को पश्चिम दिशा कहते हैं , जब कोई पूर्व  दिशा की ओर मुहँ करके खड़ा होता … Read More

वास्तुदेव की विशेषताएँ

वास्तुदेव की तीन विशेषताएं होती हैं  : –  चर वास्तु  : इसमें वास्तु पुरुष की  नजर या रुख  भाद्रपद ( अगस्त, सितम्बर ), आश्विन तथा कार्तिक ( अक्टूबर , नवम्बर ) महीनों के अवधि में दक्षिण की ओर  होता है … Read More

वास्तु शिल्पशास्त्र

      वास्तु शिल्प शास्त्र  :-   वास्तुशिल्प शास्त्र दो भागों में विभाजित किया गया है , १. देवशिल्प : मूर्ति, यज्ञ, यज्ञकुंड,धार्मिक कार्यों आदि और मंदिरों के सभी पहलुओं एवं तकनीक से सम्बन्ध रखता है| २. मानवशिल्प  :  … Read More